जानकारी के अनुसार, वन परिक्षेत्र लमनी के ग्राम चिरहट्टा बिरारपानी के बीच ग्रामीण बेंदरा खोंदरा की ओर जा रहे थे. इसी दौरान झाड़ के पास एक बाघिन को मृत देखा. जिसके बाद ग्रामीणों ने इसकी सूचना वन विभाग के अधिकारियों को दी. फिलहाल पोस्टमार्टम के बाद शव का अंतिम संस्कार कर दिया गया है. पीएम रिपोर्ट के बाद ही मौत के स्पष्ट कारणों का पता चल सकेगा.
जंगल के अंदर बाघ की सुरक्षा पर सवाल ?
अचानकमार टाइगर रिजर्व के जंगलों में वन्य प्राणी के सुरक्षा को लेकर सवाल उठ रहे हैं. लमनी रेंज के घने जंगल में दो दिन पहले बाघिन की मौत हुई थी. इधर वन विभाग के अधिकारी-कर्मचारियों को यह तक नहीं पता था कि बाघिन की मौत जंगल में हो गई है. इसकी जानकारी प्रत्यक्षदर्शियों के देने के बाद वन विभाग की टीम मौके पर पहुंची.
बाघिन की मौत के कारण पर अधिकारियों की सफाई
ATR के डिप्टी डायरेक्टर यू आर गणेश ने बताया कि “आपसी संघर्ष में बाघिन की डेथ हुई है, डॉक्टरों की टीम ने ऐसी आशंका जताई है कि आपसी संघर्ष में बाघिन की मौत हुई है. जिसका वरिष्ठ अधिकारियों की मौजूदगी पोस्टमार्टम के बाद अंतिम संस्कार कर दिया गया है.”
स्थानीय पेट्रोलिंग गार्ड रेशम बैगा ने घटना की सूचना दी. जिसके बाद अधिकारियों को सूचना देने सहित घटना की पुष्टि के बाद 24 जनवरी को डॉक्टरों की टीम ने पोस्टमार्टम कर शव का अंतिम संस्कार कर दिया गया है.
वहीं उन्होंने बताया कि शुक्रवार 24 जनवरी 2025 को राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) के SOP अंतर्गत वन्यप्राणी चिकित्सक डाॅ. पी.के. चन्दन और मुंगेली जिला के शासकीय पशु चिकित्सकों ने एनटीसीए के प्रतिनिधि, प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यप्राणी) रायपुर के प्रतिनिधि के समक्ष पोस्टमार्टम कराया गया और नियमानुसार कार्यवाही की गई.
डॉक्टरों के मुताबिक पोस्टमार्टम के दौरान गर्दन पे दांत के निशान, श्वासनली के फटने, फेफड़े की श्रृंकिंग, पूरे शरीर में खरोच का निशान पाया गया है.
निचले स्टाफ के भरोसे वन्यप्राणियों की सुरक्षा
ATR के जंगलों में अधिकारी से लेकर वनरक्षक भी शाम होते जंगल से निकलकर मैदानी इलाके में निवास करते हैं. जानकारी के अनुसार पूरा जंगल स्टाफ पैदल बेरियल और फॉरेस्ट गार्ड के भरोसे वन्यप्राणियों की सुरक्षा का जिम्मा है. जहां उच्च अधिकारी जंगल निहारने तक नहीं जाते और जब निकलते भी हैं, तब शाम ढलने के पहले ही वापस लौट जाते हैं. जिसका फायदा वनरक्षक सहित निकले स्टाफ भी जमकर उठा रहे हैं.
प्रति वर्ष करोड़ो रुपए खर्च करती है सरकार
ATR में बाघ की लगातार बढ़ती संख्या को देखते हुए NTCA के गाइडलाइन अनुसार राज्य और केंद्र सरकार हर साल करोड़ों रुपए खर्च करते हैं ताकि एटीआर टाइगर को सुरक्षा प्रदान किया जा सके. लेकिन इसमें विभाग के अधिकारियों के द्वारा पलीता लगाने का काम किया जा रहा है. वहीं एटीआर के अफसर बाघों की निगरानी करने के लिए बड़े-बड़े दावा करते हैं लेकिन इस बाघिन की मौत से सभी दावे फेल होते नजर आ रहे हैं. अब सवाल यह उठ रहा है कि इतनी बड़ी राशि कहां खर्च की जा रही है, बावजूद इसके लगातार जंगली जानवरों की मौत हो रही है.