मिसल बंदोबस्त पेश नहीं करने पर जाति प्रमाण पत्र रद्द करने का आदेश हाई कोर्ट ने किया खारिज, नए सिरे से जांच की दी छूट…

बिलासपुर। हाई कोर्ट ने उच्च स्तरीय जाति छानबीन समिति द्वारा 1950 का मिसल बंदोबस्त पेश नहीं करने पर जाति प्रमाण पत्र रद्द किए जाने के आदेश को खारिज किया है. मामले में कोर्ट ने समिति को नए सिरे से जांच करने की छूट प्रदान की है.

दरअसल, बलरामपुर सरगुजा निवासी याचिकाकर्ता विनय प्रकाश एक्का उरांव जाति का है. उन्हें 23 मई 2002 को सरगुजा कलेक्टर कार्यालय से उरांव एसटी का जाति प्रमाण पत्र जारी किया गया. याचिकाकर्ता का 30 मई 2005 को शासकीय कॉलेज में पुस्तकालय सहायक के पद पर चयन हुआ. उस समय उसने एसटी उरांव जाति का प्रमाण पत्र प्रस्तुत किया था.

कॉलेज के प्राचार्य ने जाति प्रमाण पत्र सत्यापित कराकर प्रस्तुत करने पत्र जारी किया. जाति छानबीन समिति ने 1950 का मिसल बंदोबस्त प्रस्तुत नहीं करने पर जाति प्रमाण पत्र निरस्त करने की अनुशंसा की थी. इस पर सरगुजा कलेक्टर ने 26 मार्च 2007 को जाति प्रमाण पत्र रद्द कर दिया.

याचिका पर जस्टिस अमितेन्द्र किशोर प्रसाद के कोर्ट में सुनवाई हुई. कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि सिर्फ मिसल बंदोबस्त पेश नहीं होने के आधार पर किसी का जाति प्रनाण पत्र रद्द नहीं किया जा सकता है. इसके लिए अन्य दस्तावेज की जांच की जानी चाहिए. छानबीन समिति किसी व्यक्ति की जाति स्थिति का निर्धारण नहीं कर सकती है. इसके साथ ही कोर्ट ने जाति प्रमाण पत्र रद्द करने के आदेश को खारिज किया है.

क्या होता है मिसल बंदोबस्त

अंग्रेजों ने 1929-30 में पूरे देश की जमीन के इंच-इंच के रिकॉर्ड का दस्तावेजीकरण किया था. इसे ही मिसल बंदोबस्त कहा जाता है. इसी रिकॉर्ड के आधार पर राज्य और केंद्र सरकार ने जमीनों का प्रबंधन किया. मध्यप्रदेश से छत्तीसगढ़ के अलग होने के बाद प्रदेश के कई जिलों के मिसल बंदोबस्त रिकॉर्ड गायब हैं.

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