इस वसूली आदेश के विरुद्ध धनेश्वरी रात्रे ने हाईकोर्ट बिलासपुर में रिट याचिका दायर की, जिसमें उनके अधिवक्ता अभिषेक पाण्डेय और देवांशी चक्रवर्ती ने तर्क दिया कि माननीय सुप्रीम कोर्ट के निर्णयों, जैसे स्टेट ऑफ पंजाब विरुद्ध रफीक मसीह (2015) और थॉमस डेनियल विरुद्ध स्टेट ऑफ केरला (2022) के साथ-साथ हाईकोर्ट बिलासपुर की डिवीजन बेंच द्वारा छत्तीसगढ़ शासन एवं अन्य विरुद्ध लाभाराम ध्रुव के मामले में दिए गए निर्णय के आधार पर किसी भी तृतीय श्रेणी कर्मचारी, सेवा निवृत्त कर्मचारी या उनके परिवार के सदस्यों से इस प्रकार की वसूली नहीं की जा सकती है।
अधिवक्ताओं ने कोर्ट के समक्ष यह भी तर्क दिया कि पूर्व में शासकीय कर्मचारी के सेवाकाल के दौरान अधिक वेतन भुगतान का हवाला देकर, सेवानिवृत्ति के बाद उस कर्मचारी से या उनकी मृत्यु के पश्चात उनकी विधवा या परिवार के अन्य किसी सदस्य से वसूली आदेश जारी करना न्यायसंगत नहीं है।
बिलासपुर उच्च न्यायालय ने रिट याचिका की सुनवाई के बाद अधिवक्ताओं के तर्कों से सहमत होते हुए सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट बिलासपुर के पूर्व के निर्णयों का संदर्भ लेते हुए पुलिस अधीक्षक जांजगीर-चांपा द्वारा जारी वसूली आदेश को निरस्त कर दिया। साथ ही, कोर्ट ने पुलिस अधीक्षक को निर्देशित किया कि वसूल की गई राशि तत्काल याचिकाकर्ता धनेश्वरी रात्रे को वापस की जाए।