परिवार के सभी उन जनों को समर्पित जिनकी हम काया बन इस दुनिया में हैं

अनुपम वर्मा की कलम से
पल दो पल की कहानी में जिंदगी कितने हिलोरे मारती है ,छोटी छोटी बातें कब बड़े बड़े लम्हों में तब्दील होती हैं अश्कों का गुबार बस चुपचाप एक संगीत रचता चला जाता है ,कितना मुश्किल होता है.
जब किसी को आप अपना सब कुछ समझते हो वो मुस्कराते हुए आपकी ऊँगली छोड़ आपको
आशीर्वाद देते अपनी जिम्मेदारी कहीं और
निभाने निकल पड़ता है ,और आपको अपनी जगह खड़ा कर आपको जिम्मेदार बना जाता है ,शायद यही नियति है ,जिसको बिना समझाए हम खीचीं लकीर को अपना धर्म अपना सब कुछ मानते हुए दुनिया की रस्म को आगे बढ़ाने के लिए आगे बढ़ चलते हैं ,ईश्वर की खूबसूरत देन को शिरोधार्य मानते हुए ये मानते हुए बढ़ चलते हैं ,एक प्यार का नगमा है ,मौजों की रवानी है ,जिंदगी और कुछ ही नहीं बस तेरी मेरी कहानी है।

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